दामाखेड़ा धरम धाम के मेला

माघी पुन्नी मा चलव, दामाखेड़ा धाम।
दरसन ले साहेब के,बनथे बिगड़े काम।

मनखे हा समाज ले अलग अकेल्ला कभूच नइ रही सकय अउ मनखे ले धरम हा अलग नइ हो सकय। आज देश अउ दुनिया रंग-रंग मनखे हे ता ओखर संग रंग-रंग के धरम अउ संप्रदाय घलाव जुड़े हावय। ए मामला मा हमर छत्तीसगढ़ हा घलो आरुग नइ हे। इहों रिंगी-चिंगी धरम अउ संप्रदाय हावय। अइसने एकठन कबीर पंथ हमर छत्तीसगढ़ मा चलन मा हावय। कबीर पंथ के बिचार अउ बेवहार,विधि-विधान जस के तक इहों चलागत मा हे जइसे संसार भर मा हावय। देश भर मा चलत कबीर पंथी रीति-रिवाज अउ हमर छत्तीसगढ़ मा चलत कबीर पंथी रीति-रिवाज मा कोनो खास फरक नइ हे ना कोनो नवा-नेवरिया रंग-ढ़ंग हे। ए प्रकार सरी देश-दुनिया मा कबीर पंथ हा एकमई हावय। कबीरहा मन हा कबीर साहेब के बिचार अउ उपदेश के प्रचार सरी संसार भर मा करथें। कबीर पंथ के आचार्य अउ महंत मन हा प्रवचन करथें। समाज ला चेतलग करथें। साव-चेत रहे के सुग्घर सलाह देथें। बेरा-बेरा अउ जघा-जघा मा शुभ तिथि मन मा मेला के आयोजन कबीर धरम के प्रचार करे खातिर करथें। सतगुरु साहेब के संदेश के अँजोर बगराए बर ए सरी उदिम करे जावत हे।
कबीर पंथ के सबले बड़े धरम धाम दामाखेड़ा हा हरय। ए जघा हा अभी के समय मा बलौदाबाजार जिला के सिमगा विकास खण्ड मा इस्थित
हावय। दामाखेड़ा धाम हा छत्तीसगढ़ के रायपुर-बिलासपुर मुख्य सड़क मार्ग मा हे। दामाखेड़ा गुरु गद्दी के इस्थापना विक्रम संवत् 1939 (सन् 1883) मा
सदगुरु धनी धर्मदास के प्रेरणा ले कबीर पंथ के 12 वाँ सदगुरु आचार्य श्री उग्रनाम साहेब हा विक्रम संवत् 1939-1971(सन्1883-1915) मा करे रहीन।
इँखर बाद दामाखेड़ा गुरु गद्दी मा 13 वाँ आचार्य श्री दयानाम साहेब विक्रम संवत् 1971-1984 (सन् 1915-1928) अउ 14 वाँ आचार्य श्री गृन्धमुनि नाम
साहेब विक्रम संवत् 1995-2048 (सन् 1939-1992) बइठीन। अभी वर्तमान समय मा कबीर पंथ के 15 वाँ आचार्य सदगुरु श्री प्रकाशमुनि नाम साहेब हा विक्रम संवत 2046 (सन् 1990) ले गुरु गद्दी मा आसीन हावय। इँखर उत्तराधिकारी के रुप मा नवोदित नाम साहेब हे।
दामाखेड़ा धरम धाम के इस्थापना दशरहा के दिन होय रहीस। दशरहा के दिन सदगुरु साहेब श्री प्रकाशमुनि नाम साहेब के घलो अवतरन होय रहीस। एखरे सेती हर बछर दशरहा के दिन दामाखेड़ा धाम मा जबर शोभायात्रा निकलथे जेमा सदगुरु साहेब हा रथ मा सवार होके अपन भगत मन ला
दरसन देथे। अपन गुरु साहेब के दरसन खातिर सरी संसार भर के कबीरहा भगत मन जुरियाथें। अपन निरगुन गीत भजन अउ नाच-गान ले गुरु के गुनगान करथें। साधु, संत, महंत, गियानी-धियानी मन हा सकलाथें अउ सदगुरु के दरसन पाथें।



माँघ महीना मा बसंती पंचमी के दिन सदगुरु के चरन मा गुलाल चढ़ा के माँघी मेला के सुरुवात होथे। ए मेला मा माँघ दसमी ले पुन्नी तक बड़ भारी संत समागम जुटथे। सरी देश-दुनिया के भगत, सरद्धालु इहाँ सकलाथें। कबीर पंथ के मनइया मन बर दामाखेड़ा हा एक प्रकार के धरम धाम हरय।
सतगुरु साहेब के दरसन अउ आसीरबाद पाय खातिर दुरिहा-दुरिहा ले भगत मन हा इहाँ आथे। ए मेला मा खेल-खेलौना,रैचूली-ढ़ेलवा, जादू-तमाशा, खई-खजाना, गीत-भजन, सत्संग अउ प्रवचन,कीरतन हप्ता भर ले होवत रथे। मेला मा अवइया जम्मो साधु-संत, भगत मन बर बड़ भारी भंड़ारा के बेवसथा गुरु प्रसाद के रुम मा रहिथे। एक प्रकार ले ए गुरु प्रसाद के भंड़ारा हा अक्षय पात्र बरोबर होथे जेमा मेला मा आए सबो सरद्धालु मन ला भर पेट जेवन मिलथे। वइसे ए भंडारा ले बारो महीना पचास-सौ गुरु सेवक अउ भगत मन बर जेवन बनतेच रथे। गुरु परसार मा ए भंड़ारा हा हावय। गुरु बाड़ा मा बड़का गौशाला घलाव हावय जेमा गौ सेवा-जतन के पुन्य कारज सतगुरु के आसीरबाद ले होथे। दामाखेड़ा धाम मा यज्ञशाला,पाठशाला, गौशाला,अस्पताल सब गुरुकृपा ले संचालित होथे। माँघी मेला के पबरित समय मा एक सँघरा एक सौ एक साधु-संत के द्वारा यज्ञ संपन्न होथे। चौका आनंदी आरती बड़भारी रुप मा होथे। दामाखेड़ा धाम के मेला कबीरहा मन बर बहुते महत्तम राखथे। कोनो कहूँ रहँय फेर इहाँ माँघी मेला मा हर हाल मा खच्चित पहुँचे के प्रयास करथें।
कबीर पंथ के मूल उद्देश्य:- सदगुरु कबीर साहेब के बिचार ला जीवन का उतारना एखर मूल उद्देश्य हरय। कबीर पंथ के गुरु नाम सुमिरन, निरगुन पूजा-पाठ, मंद-मँउहा के मनाही, माँसाहार के घोर बिरोध, जात-पात, छूआछूत, ऊँच-नीच, आडंबर-पाखंड के बिरोध, मनखे मा मनखे के खोज, सतधर्म-सतकर्म के मरम अउ प्रकृति के विकास सबले बड़े बिशेसता हावय। सदगुरु कबीर साहेब के उद्देश्य अउबिचार ला जन-जन तक फैलाना कबीर पंथ के असल बुता हरय। कबीर पंथ मा तीज-तिहार के बड़ महत्तम होथे खास करके पुन्नी परब के। हर पुन्नी के दिन कबीरहा मन हा सादा अउ शाकाहार जीवन बिताथें।
चौका आरती:- कबीर पंथ मा चौका आरती के बड़ महत्तम हावय। चौका आरती ला कबीर पंथ के महंत मन हा अपन आगू मा संपन्न कराथें। कबीरहा मन हा चौका के विधि-विधान ला मुक्ति (मोक्ष) के साधन मानथें। कबीर पंथ मा चौका विधान हा चार प्रकार के हावय।
1-आनंदी चौका
2-जन्मौती चौका
3-चलावा चौका
4-एकोत्तरी चौका



कबीर पंथ मा ए चौका आरती विधान ला त्रिदोष नाश करइया माने गे हावय। मनखे के त्रिदोष के नाश, सतकर्म, धर्म, सत सिक्छा-संस्कार अउ सदगुरू के सतसंग ले करे जाथे जेमा चौका आरती के प्रमुख इस्थान हावय।
बंदगी:- कबीर पंथ मा बंदगी के बहुते बड़ महत्तम हावय। कबीर पंथ मा बंदगी बर घलाव समय बाँधे गे हे। बड़े बिहनिया उठते साठ फेर नित करम ले निपटे के अउ आखिर मा जेवन करे के बाद बंदगी करे जाथे। कबीर पंथ मा मानुस तन ला प्रकृति के पाँच तत्व ले सिरजे मानथे। इही पाँच तत्व उपर जीत पाए बर दिन मा पाँच बेर बंदगी करे के विधान बनाय हावय।
दीक्षा:- कबीर पंथ मा दीक्षा के प्राचीन प्रथा आज ले चलागत मा हावय। ए प्रथा मा “बरु” या “कण्ठी” धारन करे के नियम हावय। महंत साहेब के चेला मन हा तुलसी डारा ले कण्ठी बनाथें। दीक्षा ले बर शुभ तिथि मा एक उतसव के आयोजन करे जाथे जेमा घर-परवार, नता-लगवार, सगा-संबंधी, पारा-परोसी मन ला नेवता देके बलाय जाथे। चौका आरती पाठ करके गुरु महंत साहेब हा तुलसी के बने कण्ठी ला दीक्षा लेवइया नवा चेला के कण्ठ मा बाँधथे अउ कबीर पंथ के दीक्षा देथे।
ए प्रकार कबीर पंथ मा गुरु नाम सुमिरन, सादा जीवन-ऊँच बिचार, सदभाव-समभाव अउ सदगुरु के आसीस ले मानुस तन के मुक्ति मार्ग सुझाय गे हे।

खइता माया मोह हा, नाम भजन हे सार।
जनम मरन के फेर ले, सतगुरु करही पार।

कन्हैया साहू “अमित”
शिक्षक-भाटापारा (छ.ग)
संपर्क~9753322055
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